प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी ने गाजा शांति शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया है, जो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सह-मेजबानी में 13 अक्टूबर को मिस्र के शर्म एल-शेख में आयोजित होगा।
विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि पीएम मोदी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं होंगे, लेकिन राज्य मंत्री (विदेश मामलों के) कीर्ति वर्धन सिंह भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। यह शिखर सम्मेलन गाजा युद्ध को समाप्त करने, मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने और क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करने पर केंद्रित होगा।
मिस्र के राष्ट्रपति भवन के बयान के अनुसार, शिखर सम्मेलन में 20 से अधिक देशों के नेता हिस्सा लेंगे, जिनमें ब्रिटेन के पीएम कीर स्टार्मर, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी, स्पेन के पीएम पेड्रो सांचेज और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस शामिल हैं। सम्मेलन का उद्देश्य गाजा पट्टी में युद्ध समाप्त करना, मानवीय सहायता बढ़ाना और मध्य पूर्व में स्थिरता लाना है। ट्रंप इस सम्मेलन से पहले इजरायल की संसद केडेट को संबोधित करेंगे।
भारत की भूमिका और न्योता का महत्व
पीएम मोदी को ट्रंप और सिसी द्वारा संयुक्त रूप से आमंत्रित किया गया है, जो भारत की मध्य पूर्व नीति में सक्रिय भूमिका को रेखांकित करता है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, यह न्योता 11 अक्टूबर को मिला था, लेकिन व्यस्त कार्यक्रम के कारण पीएम व्यक्तिगत रूप से नहीं जा पा रहे। कीर्ति वर्धन सिंह सम्मेलन में भारत का पक्ष रखेंगे, जो फिलिस्तीनी कारण का समर्थन और क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देने का संकेत देगा।
यह सम्मेलन ट्रंप के 20-सूत्री गाजा शांति ढांचे के पहले चरण को अंतिम रूप देने पर केंद्रित है, जो मिस्र, कतर और तुर्की की मध्यस्थता से तैयार हुआ। 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले की दूसरी वर्षगांठ के एक दिन बाद यह ढांचा तैयार हुआ था। पीएम मोदी ने हाल ही में इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू को गाजा शांति प्रगति पर बधाई दी थी। सम्मेलन भारत को मिस्र के साथ द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने और फिलिस्तीनी मुद्दे पर संतुलित रुख अपनाने का अवसर देगा।
पृष्ठभूमि और वैश्विक संदर्भ
गाजा संघर्ष 2023 से जारी है, जिसमें हजारों मौतें हो चुकी हैं। ट्रंप प्रशासन ने अप्रत्यक्ष वार्ताओं के जरिए युद्धविराम और मानवीय सहायता बढ़ाने का प्रयास किया है। सिसी ने सम्मेलन को ‘मध्य पूर्व में नई सुरक्षा युग’ का प्रारंभ बताया। भारत ने हमेशा दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन किया है, और यह सम्मेलन दिल्ली की कूटनीतिक सक्रियता को मजबूत करेगा।
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