जौनपुर। जिले के अस्थायी गोषालाओं में इन दिनों भरपेट चारा और चिकित्सा के अभाव में गोवंश दम तोड़कर सरकारी दावों की पोल खोल रहे हैं। लग रहा है इन दिनों इनकी देखभाल अधिकारियों की प्राथमिकता पर नहीं है। बेसहारा गोवंशों के संरक्षण के लिए सरकार की ओर कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। इसमें उनके संरक्षण से लेकर खाने व चिकित्सा तक की व्यवस्था है। सरकारी योजनाएं सिर्फकागजों तक ही सीमित होती नजर आ रही है। इसकी हकीकत किसी भी गौ आश्रय स्थल में आकस्मिक निरीक्षण कर आसानी से देखी जा सकती है। गोशालाओं में प्रति महीना लाखों रुपये हरा चारा,भूसे, चूनी -चोकर व कर्मचारियों तथा चिकित्सा
सुविधाओं पर पर खर्च किया जाता है, मगर यहां गोवंश इलाज और भूख से तड़प कर दम तोड़ रहे हैं, जिन्हें देखने वाला कोई नजर नहीं आ रहा।बेसहारा गोवंशों के संरक्षण के लिए जिले में ब्लाक व गांव स्तर पर सैकड़ों गोशालाएं संचालित हो रहीहैं। लेकिन इन गोशालाओं की देखरेख के नाम पर सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ाए जाते हैं। जबकि धरातल पर गोवंश भूख और इलाज के आभाव में दम तोड़ रहे हैं। सरकार गोवंश के बेहतर इलाज के लिए पशु चिकित्सको की भी तैनाती है। मानकों के अनुसार उन्हें प्रतिदिन गोशाला में जाकर जांच करनी
होतीहैं। मगर इस गोशालाओं में चिकित्सक कभी नहीं दिखाई देते हैं।यहां गोवंशों को पौष्टिक चारा की जगह पर सिर्फ जीने भर को चारा ही दिया जा रहा है। वही कई गोवंश इलाज के अभाव में तड़पते नजर आते है ।मौजूदा समय में भयंकर गर्मी में कई गोवंशों की मौत हो चुकी है। गौशाला का संचालन ग्राम पंचायत और मुख्यमंत्री निराश्रित गोवंश योजना के तहत किया जा रहा है।फिर भी गौशाला मूलभूत सुविधाओं से अभी महरुम है। सैकड़ों गोवंश पकड़कर गौशाला में लाए जरूर गए हैं, लेकिन इनके लिए पर्याप्त चारा और पानी की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। जिसके कारण गौशाला में गोवंश भूखे घूम रहे हैं, और इलाज के अभाव में गोवंश मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं।