
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने महाराष्ट्र के राज्यपाल और तमिलनाडु के वरिष्ठ भाजपा नेता सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया। यह निर्णय जगदीप धनखड़ के 21 जुलाई को स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफे के बाद लिया गया, और 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तारीख 21 अगस्त है।

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसकी घोषणा की, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, और केंद्रीय मंत्री जीतन राम माझी ने समर्थन दिया।
सीपी राधाकृष्णन को क्यों चुना गया?
सीपी राधाकृष्णन का चयन एक रणनीतिक कदम है, जिसमें वैचारिक, क्षेत्रीय, और राजनीतिक गणित शामिल हैं। निम्नलिखित कारण उनके चयन के पीछे हैं:
- RSS और भाजपा की विचारधारा से निष्ठा:
- राधाकृष्णन 16 साल की उम्र से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्वयंसेवक हैं और 1974 में भारतीय जनसंघ के राज्य कार्यकारी समिति के सदस्य बने। उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता और गैर-विवादास्पद छवि उन्हें भाजपा और RSS के लिए आदर्श बनाती है।
- 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के 240 सीटों के प्रदर्शन के बाद RSS में “मोदी के बाद कौन?” जैसे सवाल उठ रहे थे। राधाकृष्णन का चयन RSS को आश्वस्त करने का प्रयास है, खासकर जब संगठन को भविष्य की वैचारिक दिशा की चिंता है।
- तमिलनाडु और दक्षिण भारत में पैठ बढ़ाने की रणनीति:
- तमिलनाडु में भाजपा की सीमित उपस्थिति (2024 में 11.24% वोट शेयर, कोई सीट नहीं) के बावजूद, राधाकृष्णन का चयन 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से पहले दक्षिण भारत में पार्टी की स्थिति मजबूत करने का प्रयास है।
- तमिलनाडु के तिरुप्पुर में वेल्लाला गौंडर समुदाय से आने वाले राधाकृष्णन कोयंबटूर बेल्ट में प्रभावशाली हैं, जो कपड़ा और औद्योगिक केंद्र है। उनकी लोकप्रियता और सामाजिक कार्य उन्हें सभी वर्गों में स्वीकार्य बनाते हैं।
- प्रधानमंत्री मोदी ने तमिल संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे संगम साहित्य का उल्लेख, चोल साम्राज्य के स्थलों का दौरा, और नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना। राधाकृष्णन का चयन इस रणनीति को और मजबूत करता है।
- प्रशासनिक और राजनीतिक अनुभव:
- राधाकृष्णन दो बार (1998, 1999) कोयंबटूर से लोकसभा सांसद रहे, तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष (2004-07), और झारखंड, तेलंगाना, और पुडुचेरी के राज्यपाल/उपराज्यपाल रहे।
- 2004 में उन्होंने 19,000 किमी की 93-दिवसीय रथ यात्रा का नेतृत्व किया, जिसमें नदियों को जोड़ने, आतंकवाद विरोध, और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों को उठाया।
- उनकी शांत और गैर-विवादास्पद शैली उन्हें राज्यसभा के अध्यक्ष (उपराष्ट्रपति का संवैधानिक दायित्व) के लिए उपयुक्त बनाती है।
- उत्तर-दक्षिण संतुलन:
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (ओडिशा) के बाद राधाकृष्णन का चयन उत्तर और दक्षिण भारत के बीच संतुलन स्थापित करता है। यह तमिल पहचान को राष्ट्रीय मंच पर उभारता है।
- चुनावी गणित:
- उपराष्ट्रपति चुनाव में 788 सांसदों का निर्वाचक मंडल है (लोकसभा: 543, राज्यसभा: 245, 5 सीटें रिक्त), और जीत के लिए 392 वोट चाहिए। NDA के पास 422 वोट हैं, और BJD (9), YSRCP (11), और BRS (2) के समर्थन से उनकी जीत सुनिश्चित है।
विपक्ष में दरार की संभावना
इंडिया गठबंधन ने अभी तक अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन वह एक संयुक्त उम्मीदवार उतारने की योजना बना रहा है। राधाकृष्णन के चयन से विपक्ष, विशेषकर तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), के सामने रणनीतिक चुनौती है:
- DMK का धर्मसंकट:
- DMK, जिसके पास 32 सांसद हैं, तमिलनाडु की सबसे बड़ी पार्टी है। राधाकृष्णन के तमिल होने के कारण DMK पर उनका समर्थन करने का दबाव है, खासकर 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले। DMK प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने इसे “स्वागत योग्य कदम” बताया, लेकिन कहा कि DMK गठबंधन के फैसले का पालन करेगी।
- यदि DMK राधाकृष्णन का समर्थन करती है, तो यह इंडिया गठबंधन में दरार डाल सकता है। यदि नहीं करती, तो AIADMK और भाजपा DMK पर “तमिल हितों की अनदेखी” का आरोप लगा सकते हैं, जिसका असर 2026 के चुनावों पर पड़ सकता है।
- विपक्षी एकता पर ऐतिहासिक प्रभाव:
- अतीत में क्षेत्रीय भावनाओं ने विपक्षी एकता को तोड़ा है:
- 2007 में, शिवसेना ने UPA की प्रतिभा पाटिल (महाराष्ट्र) का समर्थन किया,尽管 वह NDA में थी।
- 2012 में, शिवसेना और जदयू ने प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया।
- 2017 में, जदयू ने NDA के रामनाथ कोविंद (बिहार) का समर्थन किया,尽管 वह विपक्ष में थी।
- 2022 में, तृणमूल कांग्रेस ने जगदीप धनखड़ के खिलाफ मतदान से परहेज किया।
- ये उदाहरण दर्शाते हैं कि क्षेत्रीय और व्यक्तिगत संबंध उपराष्ट्रपति/राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी एकता को प्रभावित कर सकते हैं।
- इंडिया गठबंधन की रणनीति:
- इंडिया गठबंधन के पास 234 वोट हैं, जो NDA के 422 वोटों से कम हैं। गठबंधन एक प्रतीकात्मक उम्मीदवार उतार सकता है, लेकिन जीत की संभावना कम है।
- यदि DMK राधाकृष्णन का समर्थन करती है या गठबंधन उम्मीदवार नहीं उतारता, तो राधाकृष्णन का निर्विरोध चुना जाना संभव है, जो ऐतिहासिक रूप से चार बार हो चुका है।
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