
बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पति द्वारा पत्नी के कपड़ों या खाना पकाने की कला पर की गई टिप्पणियाँ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के तहत क्रूरता या उत्पीड़न नहीं मानी जा सकतीं।

जस्टिस विबा कनकनवाड़ी और जस्टिस संजय ए. देशमुख की खंडपीठ ने एक व्यक्ति और उसके परिवार के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर आपराधिक मामले और संबंधित कार्यवाही को रद्द कर दिया। कोर्ट ने पत्नी के आरोपों को अतिशयोक्तिपूर्ण, परस्पर विरोधी और सबूतों के अभाव में पाया।
कोर्ट ने कहा, “पत्नी के कपड़े ठीक न होने या खाना ठीक न बनाने जैसी परेशान करने वाली टिप्पणियाँ गंभीर क्रूरता या उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आतीं।” कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि जब वैवाहिक रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं, तो आरोपों में अतिशयोक्ति की जाती है। यदि शादी से पहले सभी जानकारी साझा की गई थी और आरोप सामान्य या गंभीर क्रूरता की परिभाषा में फिट नहीं होते, तो पति और उसके परिवार को मुकदमे का सामना करने के लिए मजबूर करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
यह मामला मार्च 2022 में हुई शादी से जुड़ा है, जो पत्नी का दूसरा विवाह था। उसने 2013 में आपसी सहमति से तलाक लिया था। पत्नी ने आरोप लगाया कि शादी के डेढ़ महीने बाद पति और उसके परिवार ने उसके साथ ठीक व्यवहार करना बंद कर दिया। उसने यह भी दावा किया कि पति के परिवार ने उसकी मानसिक और शारीरिक बीमारियों को छिपाया था। इसके अलावा, उसने दीवाली के समय फ्लैट खरीदने के लिए 15 लाख रुपये की मांग का आरोप लगाया।
कोर्ट ने सबूतों की जाँच की और पत्नी के दावों में कई विरोधाभास पाए। चार्जशीट में शामिल पति-पत्नी के बीच की चैट से पता चला कि पति ने शादी से पहले अपनी दवाओं और बीमारी के बारे में स्पष्ट रूप से बताया था। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि पत्नी को पति की बीमारी की जानकारी थी। 15 लाख रुपये की मांग के दावे पर कोर्ट ने सवाल उठाया, क्योंकि पति के पास पहले से ही एक फ्लैट था। कोर्ट ने पत्नी के परिवार के खिलाफ लगाए गए आरोपों को “सामान्य” और बिना विशिष्ट विवरण के माना। चार्जशीट में पत्नी के बयान के अलावा कोई सबूत नहीं था, और जांच अधिकारी ने पड़ोसियों से पूछताछ भी नहीं की थी।
धारा 498ए (नए भारतीय न्याय संहिता की धारा 85) पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के खिलाफ क्रूरता से संबंधित है। यह एक संज्ञेय, गैर-जमानती, और गैर-समझौता योग्य अपराध है, जिसका मतलब है कि पुलिस बिना वारंट गिरफ्तारी कर सकती है, जमानत का अधिकार नहीं है, और मामला कोर्ट के बाहर सुलझाया नहीं जा सकता। कोर्ट ने इस मामले में पाया कि आरोप इस धारा के तहत क्रूरता की परिभाषा में फिट नहीं होते।
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