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ईरान-इस्राइल युद्ध के बीच भारत की रणनीति: इन देशों से बढ़ाया कच्चा तेल आयात

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ईरान-इस्राइल युद्ध में अमेरिका की भागीदारी के बाद पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ गया है, जिसका सीधा असर वैश्विक तेल की कीमतों पर पड़ रहा है। भारत, जो अपनी 85% से अधिक तेल आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है, ने इस स्थिति को भांपते हुए अपनी तेल आयात रणनीति में बदलाव किया है।

जून 2025 में भारत ने रूस से कच्चे तेल का आयात बढ़ाकर 20-22 लाख बैरल प्रतिदिन (bpd) कर लिया, जो पिछले दो वर्षों में सर्वाधिक है। इसके साथ ही, अमेरिका से भी आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह रणनीति होर्मुज जलडमरूमध्य में संभावित व्यवधान और तेल मूल्य वृद्धि के जोखिम को कम करने के लिए अपनाई गई है।

रूस से तेल आयात में भारी उछाल

वैश्विक व्यापार विश्लेषण फर्म Kpler के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने जून 2025 में रूस से 2-2.2 मिलियन bpd कच्चा तेल आयात किया, जो मई 2025 के 1.96 मिलियन bpd से काफी अधिक है। यह आयात इराक, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), और कुवैत से कुल मिलाकर आयातित 2 मिलियन bpd से भी ज्यादा है। रूस, जो 2022 से पहले भारत के तेल आयात का मात्र 0.2% आपूर्ति करता था, अब भारत के कुल तेल आयात का 40-44% हिस्सा प्रदान करता है। यह बदलाव रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूसी तेल (Urals, ESPO, Sokol) पर भारी छूट के कारण संभव हुआ, जो G7 के $60 प्रति बैरल की मूल्य सीमा से नीचे उपलब्ध है।

होर्मुज जलडमरूमध्य और तेल आपूर्ति जोखिम

ईरान ने अमेरिकी हमलों के जवाब में होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी है, जो वैश्विक तेल व्यापार का 20% और भारत के 40% तेल आयात का मार्ग है। यह जलडमरूमध्य सऊदी अरब, इराक, UAE, और कुवैत जैसे भारत के पारंपरिक तेल आपूर्तिकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण है। ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों द्वारा लाल सागर में व्यापारिक जहाजों पर हमले का खतरा भी मंडरा रहा है। Kpler के विश्लेषक सुमित रितोलिया ने बताया कि मध्य पूर्व से तेल लदान में कमी के संकेत हैं, क्योंकि जहाज मालिक खाड़ी में खाली टैंकर भेजने से हिचक रहे हैं। होर्मुज में 24-48 घंटे का व्यवधान भी तेल की कीमतों को $80 से ऊपर ले जा सकता है, जिससे भारत का आयात बिल $13-14 बिलियन बढ़ सकता है और चालू खाता घाटा (CAD) 0.3% तक बढ़ सकता है।

अमेरिका और अन्य स्रोतों से आयात

भारत ने जून 2025 में अमेरिका से तेल आयात को 2.8 लाख bpd से बढ़ाकर 4.39 लाख bpd कर लिया। हालांकि, अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका (नाइजीरिया, अंगोला), और लैटिन अमेरिका (ब्राजील, वेनेजुएला) से आयात महंगा है, क्योंकि इन मार्गों पर माल ढुलाई लागत अधिक है। भारत ने रूस के साथ-साथ इन स्रोतों को बढ़ाकर अपनी आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत किया है। रूसी तेल, जो होर्मुज से स्वतंत्र मार्गों (सुएज नहर, केप ऑफ गुड होप, या प्रशांत महासागर) से आता है, आपूर्ति स्थिरता और मूल्य राहत प्रदान करता है।

भारत की रणनीति और प्रभाव

  • विविधीकरण: भारत ने मध्य पूर्व पर निर्भरता कम करते हुए रूस, अमेरिका, और अन्य स्रोतों से आयात बढ़ाया। 2024 में भारत ने रूस से $48.63 बिलियन और 2025 के पहले छह महीनों में $12.54 बिलियन का तेल आयात किया। रूस अब भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है, जिसने जुलाई 2024 में चीन को पीछे छोड़ दिया।
  • रणनीतिक भंडार: भारत के पास 9-10 दिनों की आपातकालीन जरूरतों के लिए रणनीतिक तेल भंडार (पदुर, मंगलौर, विशाखापत्तनम) हैं, जिन्हें 10 MMT तक विस्तार की योजना है। यह आपूर्ति व्यवधानों से निपटने में सहायक है।
  • आर्थिक प्रभाव: ब्रेंट क्रूड की कीमतें 12 जून को $69.7 से बढ़कर 20 जून को $77.2 प्रति बैरल हो गईं। यदि कीमतें $80 को पार करती हैं, तो भारत में मुद्रास्फीति 0.3% बढ़ सकती है, और रुपये पर दबाव बढ़ेगा। विमानन, पेंट, और टायर जैसे क्षेत्र प्रभावित होंगे, जबकि तेल रिफाइनरियां और रक्षा कंपनियां लाभान्वित हो सकती हैं।
  • कूटनीति: भारत ने इस्राइल-ईरान संघर्ष में तटस्थ रुख अपनाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साइप्रस में कहा, “यह युद्ध का युग नहीं है,” और दोनों देशों से संवाद के जरिए समाधान की अपील की।

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