
खुटहन (जौनपुर)।
आज स्वर्गीय लक्ष्मी शंकर यादव जी की 30वीं पुण्यतिथि पर खुटहन थाना क्षेत्र के विसुनपुर चौराहे पर स्थापित उनकी प्रतिमा पर विभिन्न सामाजिक व क्षेत्रीय लोगों ने माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर उपस्थित लोगों ने उनके आदर्शों और योगदान को नमन करते हुए उन्हें समाजवादी सोच और ईमानदार जननेता बताया।
कार्यक्रम में हौशिला प्रसाद यादव, ओम प्रकाश यादव, दलसिंगार यादव, राजेंद्र मिश्र (पूर्व प्रधान), अशोक कुमार यादव, कमलेश कुमार (प्रधान), सुनील सिंह, आलोक तिवारी और प्रवीण यादव सहित अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
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स्वर्गीय लक्ष्मी शंकर यादव जी : एक सच्चे गांधीवादी एवं जनसेवक
स्वर्गीय लक्ष्मी शंकर यादव जी का जन्म 1 अक्टूबर 1917 को मधुपुर (विसुनपुर), शाहगंज, जनपद जौनपुर में हुआ था। उनके पिता स्वर्गीय पी. आर. यादव अध्यापक थे।
वे बचपन से ही कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार और समाजसेवा के प्रति समर्पित रहे।
उन्होंने राजा हरपाल सिंह इंटर कॉलेज, सिरंगरमऊ से 1937 में हाई स्कूल और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से 1941 में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) से M.A. और L.L.B. (Dual Course) किया।
महामना मदन मोहन मालवीय और महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए।
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संविधान निर्माण से लेकर मंत्री पद तक का सफर
सन 1950 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में बनी संविधान सभा के सदस्य के रूप में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई और डॉ. भीमराव आंबेडकर के साथ भारत के संविधान निर्माण में सहयोग किया।
वे 1952 में संसद सदस्य, फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा के कई बार विधायक और 1969 से 1977 तक कैबिनेट मंत्री रहे।
उन्होंने सहकारिता मंत्री, लोक निर्माण मंत्री, खाद्य एवं रसद मंत्री तथा स्वास्थ्य मंत्री के रूप में कार्य करते हुए भ्रष्टाचार उन्मूलन, सड़कों का विस्तार, सहकारिता विभाग में सुधार और ग्रामीण विकास जैसे कार्यों को प्राथमिकता दी।
जौनपुर सहित पूरे प्रदेश में सड़कों और पुलों के निर्माण में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा।
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कांग्रेस संगठन को नई दिशा दी
वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आह्वान पर वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में एक लाख से अधिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया गया और गांधीवादी विचारधारा को पुनर्जीवित किया गया।
1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद वे भारी मतों से विधायक चुने गए — जो उनके लोकप्रिय नेतृत्व का प्रतीक है।
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शिक्षा और समाज सेवा के प्रति समर्पण
ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार हेतु उन्होंने अनेक शिक्षण संस्थान स्थापित कराए।
धार्मिक और सांस्कृतिक ग्रंथों — गीता, रामायण, उपनिषद — का वे गहन अध्ययन करते थे और जीवन को इन्हीं सिद्धांतों के अनुरूप ढाल लिया था।
29 अक्टूबर 1995 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा। उनका अंतिम संस्कार 30 अक्टूबर 1995 को लखनऊ के भैसाकुंड घाट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया।

















