लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विद्युत विभाग के निजीकरण के खिलाफ जारी संघर्ष ने बड़ा मोड़ ले लिया है। पांच माह से जारी गतिरोध को संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे के अनिश्चितकालीन अनशन ने तोड़ दिया। पावर कारपोरेशन प्रबंधन को अंततः संघर्ष समिति को वार्ता के लिए बुलाना पड़ा। यह बैठक बिजली विभाग के निजीकरण, उत्पीड़न की कार्यवाहियों और संविदा कर्मचारियों की बहाली को लेकर हुई।
संघर्ष समिति की प्रमुख मांगें:
- उत्पीड़न की सभी कार्यवाहियां वापस ली जाएं।
- हटाए गए 25,000 से अधिक संविदा कर्मियों को तत्काल बहाल किया जाए।
- फेशियल अटेंडेंस सिस्टम के नाम पर काटे गए वेतन का भुगतान हो।
- अन्यायपूर्ण स्थानांतरण को निरस्त किया जाए।
संघर्ष समिति ने चेयरमैन से स्पष्ट कहा कि सार्थक वार्ता के लिए पहले सकारात्मक वातावरण बनाना होगा। जब तक उत्पीड़न की कार्रवाइयाँ नहीं रुकतीं, तब तक कोई भी समाधान संभव नहीं है।
शैलेन्द्र दुबे का स्वास्थ्य बिगड़ा, पर अनशन जारी
04 मई की रात संयोजक शैलेन्द्र दुबे की तबीयत अचानक बिगड़ गई। ब्लड शुगर लेवल गिर गया और बीपी काफी बढ़ गया। प्रबंधन ने पुलिस और मेडिकल टीम भेजकर अनशन तुड़वाने की कोशिश की, लेकिन सैकड़ों बिजली कर्मचारी शक्ति भवन पहुंच गए और विरोध प्रदर्शन किया। अंततः अनशन जारी रहा।
घर की बिजली बंद कर दिया निजीकरण विरोध का संदेश
05 मई को बिजली कर्मचारियों ने रात 8 से 9 बजे तक अपने घरों की बिजली बंद कर प्रदेशवासियों को चेताया कि निजीकरण से बिजली महंगी होगी और आमजन “लालटेन युग” में लौटने को मजबूर होंगे।
प्रदेश भर से व्यापक समर्थन
आज चौथे दिन 200 से अधिक बिजली कर्मचारी अनशन पर बैठे। वाराणसी, प्रयागराज, गोरखपुर, आजमगढ़, बस्ती, मिर्जापुर सहित कई जिलों और लखनऊ नगर के कर्मी शामिल रहे। पंजाब और उड़ीसा के बिजली कर्मचारियों ने भी समर्थन दिया। 06 मई को हरियाणा के बिजली कर्मचारी भी अनशन में शामिल होंगे।
संघर्ष समिति का अगला कदम
संघर्ष समिति ने प्रबंधन से सुधार के मुद्दे पर खुली वार्ता के लिए समय तय करने की मांग की है और कहा है कि वे भी अपना प्रेजेंटेशन देंगे। चेयरमैन ने शीघ्र विस्तृत वार्ता का आश्वासन दिया है।