
लखनऊ : भारत के स्वतंत्रता संग्राम और विभाजन की त्रासदी को याद करने के लिए उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान और शशि भूषण बालिका विद्यालय डिग्री कॉलेज, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में कॉलेज के सभागार में “विभाजन विभीषिका: एक त्रासदी” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के अवसर पर मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर करने वाले परिवारों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनके बलिदान को स्मरण करने के उद्देश्य से किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन और माल्यार्पण के साथ हुआ। इसके साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और अन्य शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित कर नमन किया गया। उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के निदेशक श्री विनय श्रीवास्तव के निर्देशन में आयोजित इस कार्यक्रम में विभाजन के दौरान विस्थापित परिवारों के सदस्यों को आमंत्रित कर सम्मानित किया गया।
संगोष्ठी में समाजसेवी श्री सुमित कालरा ने विभाजन की त्रासदी को याद करते हुए भावुकता के साथ बताया कि उनकी दादी ने उस दौर में अनेक कष्ट सहे। उन्होंने कहा, “मेरी दादी के मुंह से सुने उन किस्सों को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 15 अगस्त 1947 को भारत ने आजादी का अमृत पान किया, लेकिन यह आजादी अनगिनत कठिनाइयों और अत्याचारों को सहने के बाद मिली। इस विभाजन ने हजारों परिवारों को अपनी जड़ों से उखाड़ दिया, महिलाओं पर अत्याचार हुए, बच्चे अनाथ हो गए। यह केवल भौगोलिक विभाजन नहीं, बल्कि दिलों का भी विभाजन था।”

वहीं, श्री प्रकाश गोधवानी ने अपनी आपबीती साझा करते हुए कहा, “उस समय मैं चार-पांच साल का था। हम टॉफी बेचकर या दुकानों में ग्राहकों को बुलाने के लिए काम करते थे। वे दिन मुसीबतों और कष्टों से भरे थे।” उन्होंने बताया कि लगभग डेढ़ करोड़ लोग विस्थापित हुए और दस लाख से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई। उन्होंने कविता की पंक्तियों के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त कीं: “संवेदना जगाने को एक चुभन काफी है, धरा दुलारने को एक गगन काफी है।”
मुख्य वक्ता डॉ. प्रेम कुमार ने विभाजन की त्रासदी को तथ्यपरक ढंग से रेखांकित करते हुए कहा, “आजादी के शोर में विभाजन की विभीषिका हमेशा दबती रही, लेकिन अब इसे स्वर मिला है। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सबक है। आजादी के साथ विभाजन का यह द्वैध हमें हमेशा याद रखना चाहिए ताकि हम उन दुर्गम रास्तों को न भूलें, जिनसे होकर हम यहां तक पहुंचे।”

महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. अंजुम इस्लाम ने कहा, “अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति ने हमें बांट दिया। यदि विभाजन न हुआ होता, तो शायद आतंकवाद जैसी समस्याएं भी न होतीं। यह स्मृति दिवस हमें वैमनस्य और भेदभाव को खत्म करने की प्रेरणा देता है।”
कार्यक्रम में छात्राओं ने देशभक्ति गीत प्रस्तुत किए और अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सौरभ कुमार मिश्र ने किया। संगोष्ठी में छात्राओं, अध्यापकों, साहित्यकारों और विस्थापित परिवारों के परिजनों ने भाग लिया। सभी ने इस आयोजन की सराहना की और भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रमों की मांग की। यह आयोजन न केवल इतिहास की त्रासदी को याद करने का अवसर बना, बल्कि सामाजिक समरसता और एकता को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे गया।

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