अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 15 अक्टूबर 2025 को व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बातचीत के दौरान दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि भारत रूस से तेल खरीदना “जल्द ही बंद” कर देगा। ट्रंप ने कहा, “मोदी ने मुझे भरोसा दिया है कि रूस से कोई तेल खरीद नहीं होगी। यह तुरंत नहीं हो सकता, लेकिन प्रक्रिया जल्द खत्म हो जाएगी।”
उन्होंने कहा कि इससे रूस-यूक्रेन युद्ध में संघर्ष विराम आसान होगा, और युद्ध खत्म होने पर भारत फिर रूस से तेल खरीद सकता है। यह बयान यूक्रेन युद्ध के बीच रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाने की अमेरिकी रणनीति का हिस्सा लगता है, लेकिन भारत की ओर से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। विदेश मंत्रालय ने मात्र इतना कहा कि भारत की तेल खरीद “राष्ट्रीय हितों” पर आधारित है।
ट्रंप का यह दावा उनके पुराने प्रयासों का हिस्सा है, जहां उन्होंने रूस के प्रमुख तेल खरीदार देशों (जैसे भारत और चीन) पर दबाव बनाया। अगस्त 2025 में अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल खरीद के लिए 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया, जो पहले से मौजूद 25% टैरिफ के साथ कुल 50% हो गया। ट्रंप ने इसे “रूस को फंडिंग रोकने” का हथियार बताया। लेकिन सच्चाई यह है कि भारत ने इन धमकियों और जुर्माने के बावजूद रूस से तेल खरीद जारी रखी है।
भारत की निष्पक्ष विदेश नीति और ऊर्जा सुरक्षा के मुताबिक, रूस से सस्ता तेल (डिस्काउंट पर) खरीदना आर्थिक जरूरी माना जाता है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले भारत का रूस पर तेल आयात 1% से कम था, लेकिन अब यह 34-40% तक पहुंच गया है।
ट्रंप के दावे की सच्चाई: आंकड़े क्या कहते हैं?
ट्रंप का दावा आकर्षक लगता है, लेकिन नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि भारत ने रूस से तेल खरीद में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है। कमोडिटी ट्रैकर Kpler के अनुसार:
- सितंबर 2025: भारत ने रूस से 1.6 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) तेल आयात किया, जो कुल आयात का 34% था। यह जून के 2 मिलियन bpd से कम है, लेकिन जुलाई-अगस्त के औसत पर स्थिर।
- जनवरी-अक्टूबर 2025: पहले आठ महीनों में आयात में 10% की गिरावट आई, लेकिन रूस अभी भी सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है।
- अक्टूबर 2025 अनुमान: 1.56 मिलियन bpd, जो मामूली कमी दर्शाता है, लेकिन बंद होने का कोई संकेत नहीं।
भारत के सरकारी रिफाइनर (IOC, BPCL, HPCL) ने जून-सितंबर में रूसी तेल आयात 45% घटाया, लेकिन निजी रिफाइनर जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज और नयारा एनर्जी (रॉसनेफ्ट की) ने इसे बढ़ाया। रिलायंस का आयात जनवरी के 420,000 bpd से दोगुना होकर 850,000 bpd पहुंच गया। कुल मिलाकर, अमेरिकी टैरिफ का असर सीमित रहा—भारत ने इसे “अनुचित” बताते हुए रूस के साथ व्यापार जारी रखा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, “हम राष्ट्रीय हित में फैसले लेते हैं।” ट्रंप के दावे को भारत ने नकारा नहीं, लेकिन पुष्टि भी नहीं की। कुछ विश्लेषक इसे कूटनीतिक दबाव मानते हैं।
अमेरिकी टैरिफ का बैकग्राउंड और प्रभाव
ट्रंप प्रशासन ने जुलाई 2025 में भारत पर 25% टैरिफ लगाया, और अगस्त में रूसी तेल खरीद के लिए अतिरिक्त 25% “दंड” जोड़ा। यह यूक्रेन युद्ध में रूस की फंडिंग रोकने का प्रयास था। लेकिन:
- प्रभाव: भारत का अमेरिका को निर्यात (फार्मास्यूटिकल्स, ज्वेलरी) प्रभावित हुआ, लेकिन तेल आयात पर असर न्यूनतम। भारत ने अमेरिकी ऊर्जा आयात बढ़ाया (पहले छह महीनों में 70% वृद्धि), लेकिन रूस पर निर्भरता बरकरार।
- भारत की रणनीति: रूस से तेल सस्ता (5% डिस्काउंट) मिल रहा है, जो वैश्विक कीमतों (लगभग $100/बैरल) को नियंत्रित रखता है। भारत ने भुगतान में रुपये-रूबल और युआन का उपयोग बढ़ाया।
क्या होगा आगे?
ट्रंप ने कहा कि भारत की “प्रक्रिया” जल्द पूरी होगी, लेकिन आंकड़े इसके विपरीत हैं। अगर भारत रूस से तेल बंद करता है, तो वैश्विक आपूर्ति में 1 मिलियन bpd कमी आ सकती है, जिससे कीमतें $100/बैरल तक उछल सकती हैं। लेकिन भारत की ऊर्जा जरूरतें (तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता) इसे अनुमति नहीं देंगी। ट्रंप का दावा कूटनीतिक हो सकता है, खासकर जब वे चीन पर भी दबाव बना रहे हैं।
भारत ने कहा है कि यह “निष्पक्ष नीति” है, और यूक्रेन युद्ध में तटस्थ रहेगा। अगले महीनों में ट्रंप-मोदी की मुलाकात (मलेशिया समिट) में यह मुद्दा फिर उठ सकता है। फिलहाल, रूस-भारत तेल व्यापार $52.73 बिलियन (2024) का बना हुआ है, और 2025 में भी जारी।
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