मानहानि का यह मामला 2014 में राहुल गांधी के एक भाषण से संबंधित है जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि महात्मा गांधी की हत्या के लिए आरएसएस जिम्मेदार है।

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को राहत देते हुए बॉम्बे उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक पदाधिकारी को आपराधिक मानहानि के एक मामले में “विलंब से” अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने की अनुमति दी गई थी। न्यायमूर्ति पृथ्वीराज के. चव्हाण ने 26 जून को राहुल गांधी की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

अदालत ने कहा, “याचिका स्वीकार की जाती है। विवादित आदेश और उसके परिणामस्वरूप दस्तावेज के प्रदर्शन को रद्द किया जाता है तथा उसे अलग रखा जाता है। मजिस्ट्रेट अदालत को आदेश में की गई टिप्पणियों के अनुसार प्रदर्शन के संबंध में सुनवाई आगे बढ़ाने का निर्देश दिया जाता है।” उच्च न्यायालय ने मजिस्ट्रेट अदालत को मुकदमे को “शीघ्रता से निपटाने” का भी निर्देश दिया। आदेश के बाद, दस्तावेज़ को हटा दिया गया है।

उच्च न्यायालय ने गांधी के खिलाफ मुकदमा पूरा होने में गंभीर देरी पर भी गौर किया जो एक दशक से चल रही है। वर्ष 2014 में आरएसएस पदाधिकारी राजेश कुंटे ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ उसी वर्ष 6 मार्च को दिए गए भाषण को लेकर भिवंडी अदालत में मानहानि का मामला दर्ज कराया था।

राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गांधी की हत्या के लिए आरएसएस जिम्मेदार है। 3 जून को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने राजेश कुंटे द्वारा प्रस्तुत कुछ दस्तावेजों को रिकॉर्ड में लिया, जो इस मामले में एकमात्र गवाह हैं। कोर्ट ने कथित अपमानजनक भाषण की प्रतिलिपि को सबूत के तौर पर स्वीकार किया था, जिसके आधार पर राहुल गांधी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

इसके बाद कांग्रेस नेता के वकील सुदीप पासबोला और कुशल मोर ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और कहा कि कुंटे को मामले को अपने साक्ष्य के आधार पर चलाना चाहिए और साक्ष्य के लिए उन पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।

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