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फर्नीचर सप्लाई घोटाले में फंसे गोंडा के बीएसए, 2.25 करोड़ रिश्वत मांगने का आरोप

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गोंडा जिले में बेसिक शिक्षा विभाग में फर्नीचर सप्लाई के नाम पर भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सामने आया है। बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) अतुल कुमार तिवारी और दो जिला समन्वयकों पर 2.25 करोड़ रुपये की रिश्वत मांगने और 30 लाख रुपये एडवांस लेने का गंभीर आरोप लगा है।

भ्रष्टाचार निवारण कोर्ट ने 31 अक्टूबर 2025 को तीनों अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करने का आदेश जारी किया है। कोतवाली नगर गोंडा के प्रभारी निरीक्षक को निर्देश दिए गए हैं कि मामले की जांच कर कार्रवाई की जाए। यह आदेश गोरखपुर के भ्रष्टाचार निवारण कोर्ट के विशेष न्यायाधीश विपिन कुमार तृतीय ने पारित किया।

मामला मोतीगंज क्षेत्र के किनकी गांव निवासी मनोज पांडेय से जुड़ा है, जो नीमन सीटिंग सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के प्रबंध निदेशक (एमडी) हैं। मनोज ने अदालत में शिकायत दर्ज कराई कि उनकी कंपनी को गोंडा जिले के 564 उच्च प्राथमिक और संकुल विद्यालयों के लिए फर्नीचर सप्लाई का टेंडर एल-1 (सबसे कम दर वाली फर्म) के रूप में मिला था। लेकिन बीएसए अतुल कुमार तिवारी, जिला समन्वयक (जेम) प्रेमशंकर मिश्र और जिला समन्वयक (सिविल) विद्याभूषण मिश्र ने टेंडर पास करने के बदले 15 प्रतिशत कमीशन के रूप में 2.25 करोड़ रुपये की मांग की। चार जनवरी 2025 को बीएसए ने अपने राजकीय हाउसिंग कॉलोनी स्थित आवास पर मनोज को बुलाया और 30 लाख रुपये एडवांस ले लिए—जिसमें 22 लाख बीएसए को और चार-चार लाख दोनों समन्वयकों को दिए गए। बाद में शेष रकम न देने पर कंपनी को दो वर्ष के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।

मनोज ने अदालत में व्हाट्सएप चैट, ऑडियो रिकॉर्डिंग और अन्य साक्ष्य पेश किए। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने दिए गए पैसे वापस मांगे तो प्रेमशंकर मिश्र ने एक लाख रुपये लौटा दिए, लेकिन बीएसए और डीसी सिविल ने इनकार कर दिया। इससे कंपनी को भारी आर्थिक नुकसान हुआ।

आरोपी अधिकारियों का बचाव: दस्तावेज फर्जी होने का दावा

अदालत में बीएसए अतुल कुमार तिवारी और दोनों समन्वयकों ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि कंपनी ने टेंडर प्रक्रिया में फर्जी दस्तावेज जमा किए थे। अनुभव प्रमाणपत्र में दिखाई गई 5.91 करोड़ रुपये की राशि वास्तव में मात्र 9.86 लाख रुपये थी। इसी तरह, वित्तीय वर्ष 2022-23 में टर्नओवर 19.54 करोड़ बताने के बजाय वास्तविक टर्नओवर 14.54 करोड़ ही था।

इन अनियमितताओं के कारण ही फर्म को ब्लैकलिस्ट किया गया था। बीएसए तिवारी ने कहा, “फर्नीचर आपूर्ति के लिए कंपनी ने फर्जी दस्तावेज लगाए थे, इसलिए टेंडर निरस्त किया गया। एमडी ने भ्रष्टाचार निवारण कोर्ट में पेशबंदी की है।”

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश विपिन कुमार तृतीय ने माना कि आवेदक के आरोप प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं। इसलिए, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच की जाए। कोर्ट के इस फैसले से शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई की उम्मीद जगी है।

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