तामीर हसन शीबू के कलम से 

जौनपुर मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है और इस्लामी धर्म में इसे बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह महीना विशेष रूप से शिया मुसलमानों के लिए एक गहरे भावनात्मक महत्व रखता है। मुहर्रम के दौरान, विशेषतौर पर 10वें दिन जिसे आशूरा कहते हैं, कई घटनाएँ और कारण जुड़े होते हैं जिनके कारण इसे मनाया जाता है:

1. हज़रत इमाम हुसैन की शहादत:

मुहर्रम का सबसे प्रमुख कारण कर्बला की लड़ाई है, जिसमें पैगंबर मोहम्मद के पोते हज़रत इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्य शहीद हुए थे। इस घटना को याद करके शिया मुसलमान गहरा दुःख व्यक्त करते हैं।

2. सच्चाई और न्याय की लड़ाई:

3. कर्बला की लड़ाई केवल एक राजनीतिक संघर्ष नहीं थी, बल्कि यह सत्य, न्याय और धर्म के लिए की गई लड़ाई थी। हज़रत इमाम हुसैन ने यज़ीद के अत्याचार के खिलाफ अपनी जान की बाजी लगाकर सत्य की मिसाल कायम की।

3. इंसानियत की शिक्षा:

हज़रत इमाम हुसैन ने अपने कार्यों से इंसानियत और भाईचारे का सन्देश दिया। उनका बलिदान मानवता के उच्च आदर्शों का प्रतीक है।

4. मातम और शोक:मुहर्रम के दौरान शिया मुसलमान मातम मनाते हैं। वे काले कपड़े पहनते हैं, और अपने आप को इमाम हुसैन की पीड़ा और शहादत की याद में समर्पित करते हैं।

5. आशूरा का महत्व:

10वीं मुहर्रम, जिसे आशूरा कहा जाता है, इस दिन विशेष नमाज, प्रार्थनाएँ और मातम के कार्यक्रम होते हैं।

6. कर्बला की घटना का स्मरण: मुहर्रम के समय कर्बला की घटना का स्मरण किया जाता है। लोग इमाम हुसैन के बलिदान की कहानियाँ सुनते और सुनाते हैं और इससे प्रेरणा लेते हैं।

7. समानता और एकता:

मुहर्रम का समय एकता और समानता का भी प्रतीक है। इस दौरान लोग एक साथ आते हैं और एक-दूसरे के दुःख-सुख में साझेदारी करते हैं।

मुहर्रम केवल शोक और मातम का समय नहीं है, बल्कि यह सच्चाई, न्याय, इंसानियत और बलिदान के उच्च आदर्शों की याद दिलाता है।

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