चाबहार बंदरगाह ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में ओमान की खाड़ी पर स्थित है। यह ईरान का एकमात्र गहरे पानी का बंदरगाह है, जो इसे वैश्विक समुद्री व्यापार मार्गों से जोड़ता है। यह बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पाकिस्तान को बायपास करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक व्यापारिक पहुंच प्रदान करता है।
चाबहार बंदरगाह में दो मुख्य टर्मिनल हैं- शाहिद बेहेश्ती और शाहिद कलंतारी, जिसमें भारत ने शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल के विकास में निवेश किया है। यह बंदरगाह अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का हिस्सा है, जो भारत को रूस और यूरोप से जोड़ता है।
चाबहार की रणनीतिक अहमियत
चाबहार बंदरगाह भारत के लिए न केवल व्यापारिक, बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से केवल 140 किमी दूर है, जिसे चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत विकसित कर रहा है। चाबहार भारत को मध्य एशिया के संसाधन-समृद्ध लेकिन भू-आबद्ध देशों जैसे कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान तक पहुंच प्रदान करता है। यह बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान में मानवीय सहायता और व्यापार के लिए वैकल्पिक मार्ग देता है, जिससे पाकिस्तान पर निर्भरता खत्म होती है। साथ ही, यह भारत को अरब सागर में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने में मदद करता है।
अमेरिका ने छूट क्यों खत्म की?
अमेरिका ने 18 सितंबर, 2025 को घोषणा की कि वह 2018 में दी गई चाबहार बंदरगाह की प्रतिबंध छूट को 29 सितंबर, 2025 से रद्द कर रहा है। यह छूट ईरान फ्रीडम एंड काउंटर-प्रोलिफरेशन एक्ट (IFCA) के तहत दी गई थी, ताकि भारत और अन्य देश बिना अमेरिकी प्रतिबंधों के डर के बंदरगाह पर काम कर सकें।
अमेरिका का यह कदम राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “ईरान पर अधिकतम दबाव” नीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य ईरान के तेल निर्यात को शून्य करना और उसकी सैन्य गतिविधियों को रोकना है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह कदम ईरान के परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय आतंकवादी समूहों को समर्थन देने वाली अवैध वित्तीय गतिविधियों को रोकने के लिए उठाया गया है।
भारत पर क्या असर होगा?
इस फैसले का भारत की रणनीतिक और आर्थिक योजनाओं पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है:
- निवेश पर जोखिम: भारत ने चाबहार में अब तक $120 मिलियन (लगभग 1000 करोड़ रुपये) से अधिक का निवेश किया है और $250 मिलियन की क्रेडिट लाइन प्रदान की है। 2024 में, भारत ने 10 साल का दीर्घकालिक समझौता किया, जिसके तहत इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल का संचालन कर रहा है। अब, प्रतिबंधों के कारण भारतीय कंपनियां, बैंक, और शिपिंग ऑपरेटरों को अमेरिकी दंड का सामना करना पड़ सकता है, जिससे निवेश और संचालन प्रभावित हो सकता है।
- व्यापार और कनेक्टिविटी में रुकावट: चाबहार भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक व्यापार का प्रवेश द्वार है। 2017 से, भारत ने इस बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान को गेहूं, दाल, और कोविड-19 राहत सामग्री भेजी है। प्रतिबंधों से व्यापार मार्ग बाधित हो सकता है, जिससे भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजनाएं प्रभावित होंगी।
- चीन को फायदा: चाबहार बंदरगाह भारत के लिए चीन के ग्वादर बंदरगाह और BRI के खिलाफ एक रणनीतिक जवाब है। प्रतिबंधों से भारत की क्षेत्रीय प्रभावशीलता कम हो सकती है, जिससे चीन की स्थिति मजबूत हो सकती है।
- कूटनीतिक चुनौती: भारत को अब अमेरिका, ईरान, इजरायल, और खाड़ी देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना होगा। यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की परीक्षा होगी।
भारत का निवेश और प्रगति
भारत ने 2003 में चाबहार बंदरगाह के विकास की योजना शुरू की थी। 2015 में भारत और ईरान के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए, और 2016 में भारत, ईरान, और अफगानिस्तान ने त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए। 2017 में शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल का पहला चरण शुरू हुआ, और भारत ने अफगानिस्तान को गेहूं की पहली खेप भेजी।
2018 में, भारत ने टर्मिनल का संचालन शुरू किया और अब तक 90,000 TEU कंटेनर और 8.4 मिलियन मीट्रिक टन कार्गो को संभाला है। 2024-25 के लिए भारत ने चाबहार के लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
आगे की राह
भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह इस फैसले के प्रभावों की समीक्षा कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अमेरिका के साथ कूटनीतिक बातचीत के जरिए छूट की बहाली या वैकल्पिक व्यवस्थाओं की तलाश कर सकता है। कुछ विश्लेषकों का सुझाव है कि भारत स्थानीय मुद्रा में लेनदेन या अन्य गैर-डॉलर आधारित प्रणालियों का उपयोग करके प्रतिबंधों के प्रभाव को कम कर सकता है।
हालांकि, यह कदम भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह उसकी रणनीतिक स्वायत्तता और क्षेत्रीय प्रभाव को प्रभावित करता है।
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