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केरल की नर्स निमिषा प्रिया की फांसी टली, यमन में 16 जुलाई को होने वाली सजा स्थगित: सूत्र

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यमन में 16 जुलाई को होने वाली भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी को स्थानीय अधिकारियों ने स्थगित कर दिया है। सूत्रों के अनुसार, यह निर्णय भारत सरकार के कूटनीतिक प्रयासों और पीड़ित परिवार के साथ चल रही ‘ब्लड मनी’ (दिया) की बातचीत के मद्देनजर लिया गया है। निमिषा प्रिया, जो केरल के पलक्कड़ जिले की रहने वाली हैं, को 2017 में यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी।

37 वर्षीय निमिषा प्रिया 2008 में नर्स के रूप में काम करने के लिए यमन गई थीं। 2014 में, उन्होंने यमनी कानून के तहत स्थानीय साझेदार तलाल अब्दो महदी के साथ मिलकर एक क्लिनिक शुरू किया। निमिषा ने आरोप लगाया था कि तलाल ने उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया, उनके पैसे हड़पे, और उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। 2017 में, निमिषा ने कथित तौर पर अपना पासपोर्ट वापस लेने के लिए तलाल को बेहोशी की दवा दी, लेकिन खुराक अधिक होने से उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद, निमिषा और एक अन्य सहयोगी ने शव को टुकड़ों में काटकर पानी की टंकी में फेंक दिया। 2020 में, यमन की एक अदालत ने निमिषा को मौत की सजा सुनाई, जिसे 2023 में सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल ने बरकरार रखा।

फांसी स्थगित होने की वजह
सूत्रों के अनुसार, यमन के अधिकारियों ने 16 जुलाई को निर्धारित फांसी को स्थगित कर दिया है, हालांकि नई तारीख की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। भारत सरकार, विशेष रूप से विदेश मंत्रालय, इस मामले को करीब से देख रहा है और स्थानीय अधिकारियों व निमिषा के परिवार के साथ लगातार संपर्क में है। ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ ने पीड़ित परिवार के साथ ‘ब्लड मनी’ के तहत 10 लाख डॉलर (लगभग 8.4 करोड़ रुपये) की पेशकश की है, लेकिन अभी तक परिवार ने इसे स्वीकार नहीं किया है। यमनी कानून के तहत, पीड़ित परिवार की माफी या ब्लड मनी स्वीकार करने से सजा रद्द हो सकती है। हाल ही में, भारतीय सुन्नी धर्मगुरु कांतापुरम ए.पी. अबूबकर मुसलियार के हस्तक्षेप और यमन के सूफी विद्वान शेख हबीब उमर बिन हाफिज के नेतृत्व में पीड़ित परिवार के साथ बातचीत शुरू हुई, जिससे सजा स्थगित करने में मदद मिली।

भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
भारत सरकार ने यमन में हूती प्रशासन के साथ औपचारिक कूटनीतिक संबंधों की कमी के बावजूद, निमिषा की रिहाई के लिए सभी संभव प्रयास किए हैं। 14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने ‘सेव निमिषा प्रिया एक्शन काउंसिल’ की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें सरकार से कूटनीतिक हस्तक्षेप और ब्लड मनी के जरिए माफी की संभावनाएं तलाशने का अनुरोध किया गया था। हालांकि, अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि सभी कूटनीतिक चैनल उपयोग किए जा चुके हैं, और मामला अब सरकार के नियंत्रण से बाहर हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 18 जुलाई तक स्थगित कर दिया, लेकिन किसी भी नए विकास की जानकारी देने को कहा।

परिवार और सामाजिक प्रयास
निमिषा की मां प्रेमा कुमारी पिछले एक साल से यमन में हैं और अपनी बेटी को बचाने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने कोच्चि में अपना घर बेचकर और क्राउडफंडिंग के जरिए धन जुटाया है। सामाजिक कार्यकर्ता सैमुअल जेरोम बास्करन पीड़ित परिवार के साथ बातचीत में जुटे हैं। केरल के गवर्नर और स्थानीय नेताओं ने भी केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।

चुनौतियां और आगे की राह
यमन में हूती नियंत्रित क्षेत्रों में कठोर न्यायिक प्रणाली और भारत के साथ औपचारिक कूटनीतिक संबंधों की कमी के कारण मामला जटिल है। मानवाधिकार संगठनों ने निमिषा के ट्रायल में पारदर्शिता की कमी और उचित कानूनी सहायता न मिलने की आलोचना की है। फिर भी, पीड़ित परिवार की माफी और ब्लड मनी की स्वीकृति अब भी निमिषा की जान बचाने की आखिरी उम्मीद है। भारत सरकार और सामाजिक संगठन इस दिशा में अंतिम प्रयास कर रहे हैं।

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