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पुणे में हादसे पर प्रशासन की करवाई पर सवाल, निबंध लिखने से क्या लौटेगी जान, लोगों को आई निर्भया की याद

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कई साल पहले देश में एक बहस छिड़ी थी, क्या जघन्य अपराधों के लिए नाबालिगों को भी बालिग मानना चाहिए..? इस बहस का अंत अभी तक नहीं हुआ है, लेकिन पुणे में एक और सड़क हादसे ने देश की जनता को आक्रोश से भर दिया है।

एक अमीर बाप का बेटा अपनी दो करोड़ की गाड़ी से ट्रैवल करता है, नशे में धुत लगातार गाड़ी की रफ्तार बढ़ाता रहता है और देखते ही देखते बाइक पर सवार दो लोगों को मौत की नींद सुला देता है। लेकिन इस हादसे के बाद आरोपी युवक को सजा क्या मिलती है 15 घंटे में जमानत, उस जमानत के दौरान भी कथित VIP ट्रीटमेंट और शुरुआत में पुलिस की काफी मदद।

इस हादसे में आरोपी युवक को तो जरूर बेल मिल गई लेकिन उसके पिता को पुलिस ने गिरफ्तार किया। पिता भी काफी चालाक था जिसने हादसे के तुरंत बाद ही अपना सिम कार्ड बदल लिय और खुद भागने का प्लान तैयार किया।

पुलिस से बचने के लिए लगातार वो अपनी गाड़ी बदलता रहा लेकिन जीपीएस की मदद से उसकी लोकेशन ट्रेस हुई और वो पुलिस की गिरफ्त में आ गया लेकिन इस मामले में बात आरोपी के पिता की नहीं है बल्कि बात उस नाबालिग लड़के की है जिसने उम्र के लिहाज से तो जरूर बालिग होने का तमगा हासिल नहीं किया है लेकिन उसने अपनी हरकतों से साफ दिखा दिया कि वो एक बालिग की तरह ही सजा पाने का पूरा अधिकारी है।

असल में निर्भया कांड के बाद पूरे देश में एक बहस छिड़ी थी क्या जघन्य अपराधों के लिए नाबालिगों को बालिग की तरह ट्रीट करना चाहिए, उसी बहस में एक वर्ग का कहना था कि हर नाबालिग को अपनी गलती सुधारने का एक मौका जरूर मिलना चाहिए लेकिन तब दूसरा वर्ग उतनी ही ताकत के साथ उस तर्क का काउंटर करता था, कहा जाता था ‘गलती को सुधारा जा सकता है, गुनाह को नहीं।

अगर किसी महिला के साथ बलात्कार होता है, क्या उसकी खोई हुई अस्मिता को वापस लाया जा सकता है? क्या अगर किसी की हत्या कर दी जाए तो क्या मतृक को फिर जिंदा किया जा सकता है? अब इन सभी सवालों का जवाब ‘नहीं’ में है और इसी आधार पर पुणे हादसे के आरोपी को माफ ना करने की बात की जा रही है। उसने जिन दो युवको को कुचला है, उनकी कोई गलती नहीं थी, लेकिन नाबालिग जरूर नशे में था, वो जरूर तेज रफ्तार में गाड़ी भगा रहा था।

अब इस मामले में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने उस नाबालिग को जमानत देने का काम किया। जमानत देते समय कहा गया कि उसे सड़क दुर्घटनाओं पर 300 शब्द का निबंध लिखना होगा, यरवदा मंडल की पुलिस के साथ मिलकर ट्रैफिक कंट्रोल में मदद करनी होगी, शराब छोड़ने के लिए मनोचिकित्सक के पास इलाज करवाना होगा।

अब अपराध क्या था- दो मासूमों को कुचला, नतीजा क्या निकला- उन दो मासूमों की मौत लेकिन उस मौत की सजा क्या-15 घंटे में जमानत? अब इस पूरे मामले में आरोपी को मिली रियायत को अन्याय इसलिए कहा जा रहा है। क्योंकि देश ने इससे पहले भी एक ऐसा मामला देखा था, जहां पर नाबालिग ने जघन्य अपराध किया लेकिन उसे ज्यादा सजा नहीं मिली। उस मामले में ये जरूर हुआ था कि बाद में कानून में बड़ा बदलाव हुआ और नाबालिगों को लेकर भी सख्त सजा का प्रावधान तैयार हुआ।

निर्भया मामले में 23 साल की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। 6 आरोपियों ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी थीं, लेकिन उन आरोपियों में एक नाबालिग था जिसने सबसे ज्यादा क्रूरता की थी माना जाता है कि निर्भया की जो मौत हुई, उसमें सबसे बड़ा हाथ भी उसका रहा लेकिन क्योंकि वो आरोपी नाबालिग था उसे सिर्फ तीन साल की सजा मिली और वो 2015 में बाहर निकल गया।

वही एक आरोपी ने सुसाइड किया और बाकी को फांसी दी गई। लेकिन उस केस से दो बड़े बदलाव देखने को मिले-

पहला– बलात्कार की परिभाषा को बदला गया।

दूसरा– नाबालिग की परिभाषा में एक अहम बदलाव हो गया।

इस कानून के अहम प्रावधान

–रेप और हत्या जैसे मामलों में नाबालिग आरोपी को बालिग माना जाएगा•

–जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड तय करेगा- बालिग की तरह केस चलाना है या नहीं•

–जघन्य अपराध होने पर आरोपी नाबालिग के पिता को भी गिरफ्तार किया जा सकता है

अब इस कानून के सहारे ही मांग की जा रही है कि पुणे के ‘रईसजादे’ को भी एक व्यसक के रूप में देखा जाए और उसे मामूली सजा देकर बख्शा ना जाए। इसके ऊपर इस केस में कुछ ऐसी बातें सामने आई हैं जिस वजह से रईसजादे के खिलाफ सख्त से सख्त एक्शन की मांग हो रही है।

असल में शुरुआती जांच के बाद कहा गया है कि आरोपी युवक ने पूरे 48 हजार की शराब पी है, उसके 12वें के बोर्ड खत्म हुए थे तो जश्न मनाने के लिए उसने अपने दोस्तों के साथ जमकर पार्टी की उसने बालिग ना होते हुए भी शराब का सेवन किया। ये उसकी पहली और सबसे बड़ी भूल साबित हुई।

महाराष्ट्र में ड्रिंकिंग एज 25 साल रखी गई है ऐसे में यहां भी नाबालिग ही दोषी साबित होता है। दूसरी गलती ये रही कि वो नाबालिग होते हुए भी गाड़ी ड्राइव कर रहा था।

इस पुणे वाले मामले में देखा जाए तो पिता ने ना सिर्फ अपने बेटे को इतनी महंगी गाड़ी दे रखी थी बल्कि उसे शराब पीने की भी पूरी आजादी थीl और सबसे बड़ा आरोप तो ये है कि नाबालिग की तेज रफ्तार गाड़ी ने दो लोगों को कुचल दिया, उनकी मौके पर ही मौत हो गई।

आरोपी के अगर सभी आरोपों को नजरअंदाज कर भी दिया जाए, तब भी दो लोगों की मौत उसे किसी भी तरह से बचने का मौका नहीं देती है। ऐसे मामलों के लिए कहा गया है कि नाबालिगों को व्यसक की तरह ट्रीट किया जाए।

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