न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ए जी मसीह की पीठ ने कहा कि पंजाब और हरियाणा सरकारों द्वारा खेतों में आग लगाने की घटनाओं को रोकने के प्रयास महज दिखावा हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पंजाब और हरियाणा सरकार को पराली जलाने के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने के मामले में आड़े हाथों लिया। 16 अक्टूबर को कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा सरकार के मुख्य सचिवों को तलब किया था। कोर्ट ने राज्य में पराली जलाने के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई न किए जाने पर कड़ी नाराजगी जताई थी। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने पाया था कि पराली जलाने की घटनाओं के खिलाफ एक भी मुकदमा नहीं चलाया गया। कोर्ट ने वायु गुणवत्ता आयोग (सीएक्यूएम) से कहा था कि वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहने वाले राज्य अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करे।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, “आपकी ओर से कहा गया है कि करीब 1080 उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, लेकिन आपने सिर्फ 473 लोगों से मामूली जुर्माना वसूला है। आप 600 या उससे अधिक लोगों को छोड़ रहे हैं। हम आपको साफ-साफ बता दें कि आप उल्लंघनकर्ताओं को यह संकेत दे रहे हैं कि उनके खिलाफ कुछ नहीं किया जाएगा। यह पिछले तीन सालों से हो रहा है।”

सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण कानून को “बेकार” बनाने के लिए केंद्र की खिंचाई की और कहा कि सीएक्यूएम अधिनियम के तहत प्रावधान जो पराली जलाने पर दंड से संबंधित है, उसका क्रियान्वयन नहीं किया जा रहा है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि अमृतसर, फिरोजपुर, पटियाला, संगरूर, तरन तारन जैसे पंजाब के कई जिलों में पराली जलाने के 1,000 से अधिक मामले सामने आए हैं।

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