भारतीय विज्ञापन उद्योग गहन शोक में डूब गया है, क्योंकि किंवदंती कंटेंट राइटर और क्रिएटिव डायरेक्टर पियूष पांडे का निधन हो गया। 70 वर्षीय पांडे ने हास्य, हिंदी की छाप और सांस्कृतिक समझ के अनूठे मिश्रण से ब्रांड स्टोरीटेलिंग को क्रांति दी। उन्होंने 24 अक्टूबर 2025 की सुबह मुंबई में एक गंभीर संक्रमण से जूझते हुए एक महीने लंबे कोमा के बाद अंतिम सांस ली।
उनकी बहन इला पांडे ने एक भावुक बयान में इसकी पुष्टि की, जिसमें उन्होंने “हमारे सबसे प्रिय और महान भाई” के नुकसान पर गहरा शोक व्यक्त किया। पांडे का अंतिम संस्कार 25 अक्टूबर को सुबह 11 बजे मुंबई के शिवाजी पार्क श्मशान घाट में होगा।
ओगिल्वी इंडिया में चार दशकों से अधिक समय तक रहते हुए—जहां वे एग्जीक्यूटिव चेयरमैन और ग्लोबल चीफ क्रिएटिव ऑफिसर बने—पांडे ने विज्ञापनों को कठोर, अंग्रेजी-प्रधान प्रस्तुतियों से निकालकर भारतीय मनोविज्ञान को छूने वाली सहज कहानियों में बदल दिया। 1955 में जयपुर में जन्मे पांडे ने अपने भाई प्रसून पांडे (जो एक प्रसिद्ध विज्ञापन विशेषज्ञ हैं) के साथ रेडियो जिंगल्स से शुरुआत की, जो उनके करियर की नींव बनी। क्रिकेट के सपनों, चाय चखने के काम और निर्माण कार्यों के बाद 1982 में 27 वर्ष की उम्र में ओगिल्वी में शामिल हुए। उनका पहला विज्ञापन? सनलाइट डिटर्जेंट का एक साधारण प्रिंट, लेकिन इसने पॉप कल्चर में अमिट छाप छोड़ी।
पांडे की विरासत: आइकॉनिक कैंपेन जो भारतीय संस्कृति का हिस्सा बने
पांडे की रचनात्मकता ने ब्रांड्स को जीवंत कर दिया। फेविकॉल के मजेदार “जोड़ है तो तोड़ना मुश्किल” से लेकर कैडबरी के “कुछ खास है ज़िंदगी में” तक, उनके विज्ञापन हास्य और भावनाओं से भरे थे। वोडाफोन (अब वायगो) का पग वाला ऐड, एशियन पेंट्स का “हर घर कुछ कहता है” और बजाज का “हममें है हिम्मत” जैसे कैंपेन आज भी याद किए जाते हैं। राजनीति में भी उनका योगदान उल्लेखनीय रहा—2014 लोकसभा चुनाव के लिए “अब की बार मोदी सरकार” और “अच्छे दिन आने वाले हैं” जैसे नारे उन्होंने ही गढ़े। पोलियो उन्मूलन कैंपेन (अमिताभ बच्चन के साथ) और राष्ट्रीय एकीकरण गीत “मिले सुर मेरा तुम्हारा” में भी उनकी भूमिका थी।
| प्रमुख कैंपेन | ब्रांड | विशेषता |
|---|---|---|
| फेविकॉल का जोड़ | फेविकॉल | मजेदार कहानियां जो मजबूती का प्रतीक बनीं। |
| कुछ खास है | कैडबरी डेयरी मिल्क | भावनात्मक अपील, खुशी के पल कैप्चर। |
| हैप्पी टू यू | वोडाफोन | पग वाला ऐड, जो कनेक्टिविटी को क्यूट बनाया। |
| हर खुशी में रंग लाए | एशियन पेंट्स | घरों को भावनाओं से जोड़ा। |
| अब की बार | भाजपा (2014) | राजनीतिक स्लोगन जो इतिहास रच गया। |
पुरस्कार और मान्यता: पहला एशियन Cannes जूरी चेयर, पद्मश्री सम्मान
पांडे को वैश्विक पटल पर पहचान मिली। 2004 में वे Cannes Lions इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ क्रिएटिविटी के जूरी प्रेसिडेंट बने—पहले एशियन के रूप में। 2012 में CLIO लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड और 2016 में पद्मश्री (भारतीय विज्ञापन उद्योग का पहला राष्ट्रीय सम्मान) मिला। उनकी किताब “पांडेमनियम” ने उनकी सोच को दुनिया के सामने रखा। 2023 में एग्जीक्यूटिव चेयरमैन पद से सेवानिवृत्त होकर सलाहकार बने, लेकिन उनका प्रभाव बरकरार रहा।
श्रद्धांजलि: पीएम मोदी से लेकर उद्योगपतियों तक का शोक
निधन की खबर फैलते ही हस्तियां श्रद्धांजलि अर्पित करने लगीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, “श्री पियूष पांडे जी की रचनात्मकता की प्रशंसा की जाती थी। विज्ञापन और संचार जगत में उनका योगदान स्मारकीय था। हमारे बीच बातचीत को हमेशा याद रखूंगा। उनके निधन से दुखी हूं। परिवार और प्रशंसकों के साथ मेरी संवेदनाएं। ओम शांति।” वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, “विज्ञापन के दिग्गज, उन्होंने रोजमर्रा की मुहावरों, मिट्टी के हास्य और सच्ची गर्मजोशी लाकर संचार को बदल दिया।” उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने उन्हें “विज्ञापन उद्योग पर विशाल पदचिह्न छोड़ने वाला” बताया। सुहेल सेठ ने लिखा, “मेरे सबसे प्रिय मित्र पियूष पांडे के नुकसान से गहरा सदमा।
भारत ने न केवल एक महान विज्ञापन मन खोया बल्कि एक सच्चे देशभक्त और सज्जन व्यक्ति को।” हर्षा भोगले ने कहा, “उन्होंने अंग्रेजी की खूबसूरती को हिंदी की सुंदरता से सजाया।” ओगिल्वी ने बयान जारी कर कहा, “वह शांतिपूर्ण तरीके से चले गए। हर कोई इस भयानक नुकसान को अपने तरीके से संसाधित करेगा।”
सोशल मीडिया पर प्रशंसक और सहकर्मी उन्हें याद कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, “पियूष पांडे का निधन विज्ञापन जगत के लिए अपूरणीय क्षति। उनके कैंपेन आज भी प्रेरणा स्रोत हैं।” आईएफटीपीसी ने शोक व्यक्त किया, “गहन शोक की खबर, किंवदंती विज्ञापन पुरुष पियूष पांडे जी का निधन। परिवार, मित्रों और प्रियजनों के प्रति हार्दिक संवेदना। ओम शांति।” एनडीटीवी और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे मीडिया ने उनकी विरासत पर विशेष कवरेज किया।
एक युग का अंत: भारतीय विज्ञापन की आत्मा खो गई
पांडे का जाना भारतीय विज्ञापन के लिए एक युग का अंत है। वे न केवल ब्रांड्स को बेचते थे, बल्कि कहानियां गढ़ते थे जो दिलों को छूती थीं। उनके भाई प्रसून पांडे और बहन इला अरुण (गायिका) के साथ उनका परिवारिक योगदान कला और मीडिया में फैला हुआ है। उद्योग उन्हें “भारतीय विज्ञापन की आवाज” कह रहा है। उनकी विरासत—हास्यपूर्ण, सांस्कृतिक रूप से जड़ वाली—पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। ओम शांति।
The post भारतीय विज्ञापन जगत में शोक की लहर: पियूष पांडे का निधन, हास्य, हिंदी और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से ब्रांड स्टोरीटेलिंग को दिया नया आयाम appeared first on Live Today | Hindi News Channel.

