भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 25 सितंबर 2025 को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए सह-प्रभारी नियुक्त किया है। इस फैसले को पार्टी संगठन में मौर्या के बढ़ते कद और उन पर जताए गए भरोसे के रूप में देखा जा रहा है।
बिहार में अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए BJP ने केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को मुख्य प्रभारी नियुक्त किया है, जबकि मौर्या और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल सह-प्रभारी की भूमिका निभाएंगे। यह नियुक्ति बिहार की जटिल जातिगत समीकरणों और ओबीसी वोट बैंक को साधने की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है।
ओबीसी वोट बैंक पर नजर
केशव प्रसाद मौर्या, जो कोईरी-कुशवाहा समाज से आते हैं, उत्तर प्रदेश में BJP के प्रमुख ओबीसी चेहरों में से एक हैं। बिहार में ओबीसी समुदाय, विशेष रूप से गैर-यादव ओबीसी और अति-पिछड़ा वर्ग (EBC), राजनीतिक रूप से निर्णायक भूमिका निभाते हैं। मौर्या की नियुक्ति को BJP की रणनीति के तहत गैर-यादव ओबीसी और EBC वोटों को एकजुट करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। बिहार विधानसभा में 243 सीटों में से NDA के पास वर्तमान में 131 सीटें हैं (BJP: 80, JD(U): 45, HAM(S): 4, और 2 निर्दलीय), जबकि विपक्षी महागठबंधन के पास 111 सीटें हैं (RJD: 77, कांग्रेस: 19, CPI(ML): 11, CPI(M): 2, CPI: 2)। मौर्या का मजबूत संगठनात्मक अनुभव और जमीनी जुड़ाव इस कठिन चुनावी जंग में NDA को मजबूती दे सकता है।
मौर्या का सियासी अनुभव
मौर्या ने 2014 से 2017 तक उत्तर प्रदेश BJP के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 403 में से 312 सीटों के साथ प्रचंड जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी रणनीति ने गैर-यादव ओबीसी समुदायों, जैसे कोईरी, कुशवाहा, और अन्य पिछड़े वर्गों, को BJP की ओर आकर्षित किया। इस अनुभव को अब बिहार में दोहराने की कोशिश की जा रही है, जहां कोईरी और कुशवाहा जैसे समुदायों का बड़ा वोट आधार है। मौर्या की नियुक्ति को समाजवादी पार्टी (SP) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जैसे दलों के पारंपरिक यादव और दलित वोट बैंक के खिलाफ एक जवाबी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
अटकलों पर विराम
पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश में मौर्या और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच कथित तनाव की अटकलें चल रही थीं। 2022 के विधानसभा चुनाव में मौर्या का सिराथू सीट से हारना और 2024 के लोकसभा चुनाव में BJP के अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन ने इन अटकलों को हवा दी थी। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने मौर्या को 100 विधायकों के साथ BJP से अलग होने और मुख्यमंत्री बनने का ऑफर भी दिया था, जिसे मौर्या ने ठुकरा दिया। बिहार में सह-प्रभारी की जिम्मेदारी मिलने से इन अटकलों पर विराम लग गया है, और यह स्पष्ट हो गया है कि BJP आलाकमान मौर्या पर भरोसा बनाए हुए है।
BJP की रणनीति
BJP ने बिहार में धर्मेंद्र प्रधान को मुख्य प्रभारी बनाकर एक अनुभवी और विश्वसनीय रणनीतिकार को चुना है, जिन्होंने ओडिशा (2024) और हरियाणा (2024) में पार्टी को जीत दिलाई। मौर्या और पाटिल की सह-प्रभारी के रूप में नियुक्ति से पार्टी का लक्ष्य जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करना और NDA के सहयोगी दलों, विशेष रूप से नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड), के साथ सीट-बंटवारे में सामंजस्य स्थापित करना है। मौर्या का ओबीसी समुदायों के बीच प्रभाव और उनकी रैली आयोजन क्षमता बिहार में BJP के लिए फायदेमंद हो सकती है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
X पर #BiharElection2025 और #KeshavPrasadMaurya ट्रेंड कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, “मौर्या का बिहार में सह-प्रभारी बनना BJP की ओबीसी रणनीति को मजबूत करेगा। नीतीश और मौर्या की जोड़ी RJD को कड़ी टक्कर देगी।” वहीं, कुछ यूजर्स ने इसे BJP की “जातिगत राजनीति” करार दिया। @PoliticalKida ने ट्वीट किया, “मौर्या का चयन बिहार में गैर-यादव OBC और EBC वोटों को साधने की मास्टरस्ट्रोक रणनीति है।”
बिहार में चुनौतियां
बिहार में BJP को नीतीश कुमार की JD(U) और चिराग पासवान की LJP के साथ गठबंधन को बनाए रखते हुए RJD-कांग्रेस के नेतृत्व वाले INDIA ब्लॉक का सामना करना है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने हाल ही में “मोस्ट बैकवर्ड जस्टिस मैनिफेस्टो” जारी किया, जिसमें EBC और दलित समुदायों को लुभाने की कोशिश की गई है। मौर्या की नियुक्ति को इस रणनीति के जवाब के रूप में देखा जा रहा है। इसके अलावा, BJP को 2024 के लोकसभा चुनावों में बिहार में मिली 12 सीटों (40 में से) के कमजोर प्रदर्शन को सुधारने की चुनौती है।
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