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H-1B वीजा शुल्क वृद्धि: भारतीय आईटी कंपनियों के लिए संकट, नासकॉम ने दी चेतावनी

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 19 सितंबर 2025 को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें H-1B वीजा आवेदनों पर 100,000 डॉलर (लगभग ₹88 लाख) का वार्षिक शुल्क लगाया गया है, जो 21 सितंबर 2025 से प्रभावी होगा। यह शुल्क पहले के $2,000-$5,000 की तुलना में 2,111% की वृद्धि है। इस कदम ने भारत की $283 बिलियन की आईटी इंडस्ट्री में हलचल मचा दी है।

नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनीज (नासकॉम) ने चेतावनी दी है कि यह नीति भारतीय आईटी कंपनियों, पेशेवरों और छात्रों के लिए व्यवसाय निरंतरता और रोजगार पर गंभीर प्रभाव डालेगी। एक दिन की कार्यान्वयन समयसीमा ने अनिश्चितता को और बढ़ा दिया है।

भारतीय आईटी कंपनियों पर प्रभाव

नासकॉम ने कहा कि यह शुल्क वृद्धि ऑनशोर प्रोजेक्ट्स में व्यवधान पैदा करेगी, जिसके लिए महंगी समायोजन की आवश्यकता होगी। भारतीय आईटी दिग्गज जैसे टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इन्फोसिस, विप्रो, HCLTech, और कॉग्निजेंट, जिन्होंने FY25 में 13,870 H-1B वीजा (कुल 106,922 का 13%) प्राप्त किए, पर भारी वित्तीय दबाव पड़ेगा। इन कंपनियों के लिए वीजा लागत $13.4 मिलियन से बढ़कर $1.34 बिलियन हो सकती है, जो FY25 में उनकी संयुक्त शुद्ध लाभ का लगभग 10% है।

  • लागत में वृद्धि: TCS, जिसने FY25 में 5,505 H-1B वीजा प्रायोजित किए, को अतिरिक्त $550.5 मिलियन का खर्च वहन करना होगा। इसी तरह, इन्फोसिस (2,004 वीजा) और कॉग्निजेंट (2,493 वीजा) को क्रमशः $200.4 मिलियन और $249.3 मिलियन का अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा।
  • बिजनेस मॉडल में बदलाव: JSA एडवोकेट्स के सजाई सिंह के अनुसार, H-1B पर निर्भर कंपनियां प्रतिस्पर्धात्मकता खो सकती हैं, जिससे उन्हें हायरिंग रणनीतियों और बिजनेस मॉडल पर पुनर्विचार करना होगा। छोटी कंपनियां और स्टार्टअप्स के लिए यह लागत असहनीय हो सकती है, जबकि बड़ी कंपनियां लागत को अवशोषित कर सकती हैं, लेकिन उनके मार्जिन पर दबाव पड़ेगा।
  • शेयर बाजार पर प्रभाव: आदेश की घोषणा के बाद, इन्फोसिस के ADR में 4.5%, विप्रो में 3.4%, और कॉग्निजेंट में 4.3% की गिरावट दर्ज की गई, जो निवेशकों की लाभप्रदता को लेकर चिंताओं को दर्शाता है।

रोजगार और नवाचार पर चिंताएं

नासकॉम ने चेतावनी दी कि यह शुल्क वृद्धि अमेरिका के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र और व्यापक रोजगार अर्थव्यवस्था पर “लहर प्रभाव” डालेगी। भारतीय पेशेवर, जो H-1B वीजा धारकों का 71% हिस्सा हैं, AI और अन्य अग्रणी प्रौद्योगिकियों में अमेरिकी नवाचार के लिए महत्वपूर्ण हैं। एक दिन की समयसीमा ने पेशेवरों और छात्रों के लिए अनिश्चितता बढ़ा दी है, जिससे भारतीय प्रतिभाएं अमेरिकी अवसरों से दूर हो सकती हैं।

  • रोजगार हानि: उच्च लागत के कारण कंपनियां H-1B हायरिंग में कटौती कर सकती हैं, जिससे हजारों भारतीय तकनीकी कर्मचारियों पर असर पड़ेगा। ग्रीन कार्ड की दशकों लंबी प्रतीक्षा के साथ, $100,000 का वार्षिक शुल्क वीजा नवीनीकरण को कई लोगों के लिए असहनीय बना सकता है, जिससे उन्हें भारत लौटने या अन्य देशों (जैसे कनाडा, यूके, यूएई) में अवसर तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
  • अमेरिकी नौकरी बाजार: ट्रम्प प्रशासन का दावा है कि यह नीति अमेरिकी श्रमिकों को प्राथमिकता देगी, लेकिन नासकॉम ने जोर दिया कि भारतीय कंपनियां प्रचलित मजदूरी का भुगतान करती हैं, अमेरिकी नियमों का पालन करती हैं, और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में योगदान देती हैं। यह नीति वैश्विक प्रतिभाओं तक पहुंच को सीमित कर अमेरिका की प्रतिस्पर्धात्मकता को कमजोर कर सकती है।

रणनीतिक बदलाव और कम निर्भरता

भारतीय आईटी कंपनियों ने हाल के वर्षों में H-1B पर निर्भरता को 50% से अधिक कम किया है, जिसमें शीर्ष सात कंपनियों के लिए स्वीकृत याचिकाएं FY15 में 15,100 से घटकर FY23 में 6,700 हो गईं। रणनीतियों में शामिल हैं:

  • स्थानीय भर्ती: TCS और इन्फोसिस जैसी कंपनियां अब अमेरिका में 50% से अधिक स्थानीय कर्मचारियों को नियुक्त करती हैं, और टेक्सास व नॉर्थ कैरोलिना में डिलीवरी सेंटर स्थापित किए हैं।
  • ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs): एक वरिष्ठ भारतीय सरकारी अधिकारी ने कहा कि शुल्क वृद्धि भारत में GCCs की स्थापना को तेज कर सकती है, जिससे बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहर नवाचार केंद्र बन सकते हैं।
  • ऑटोमेशन और ऑफशोरिंग: कंपनियां AI, ऑटोमेशन, और ऑफशोर डिलीवरी में निवेश कर रही हैं, जिससे लागत को कम करने में मदद मिलेगी। EIIRTrend के परीक जैन का कहना है कि ये उपाय स्थिरीकरण ला सकते हैं।

भारत के लिए संभावित लाभ

हालांकि यह नीति तत्काल व्यवधान पैदा करेगी, लेकिन दीर्घकाल में भारत को लाभ हो सकता है। विशेषज्ञों जैसे मोहनदास पाई और अमिताभ कांत का मानना है कि उच्च लागत अमेरिकी कंपनियों को भारत में परिचालन बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिससे तकनीकी केंद्रों और स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिलेगा। यह नीति भारतीय पेशेवरों को भारत लौटने और स्थानीय नवाचार में योगदान देने के लिए भी प्रोत्साहित कर सकती है।

कानूनी और राजनीतिक प्रतिक्रिया

नासकॉम और कानूनी विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस आदेश को अमेरिकी अदालतों में चुनौती दी जाएगी, क्योंकि INA धारा 212(f) का उपयोग शुल्क लगाने के लिए कार्यकारी अधिकार से अधिक हो सकता है। “राष्ट्रीय हित” के लिए छूट प्रक्रिया अस्पष्ट है, जिससे अनिश्चितता बढ़ रही है। भारत में, कांग्रेस नेताओं मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी की “रणनीतिक चुप्पी” की आलोचना की, इसे राष्ट्रीय हितों की रक्षा में विफलता बताया।

क्यों महत्वपूर्ण है यह?

$100,000 का H-1B शुल्क भारत की आईटी इंडस्ट्री के लिए खतरा है, जो अपनी आय का 50-60% अमेरिकी निर्यात से कमाती है। HIRE एक्ट जैसे प्रस्तावित कानूनों के साथ, जो आउटसोर्सिंग पर 25% कर लगाते हैं, यह नीति अमेरिकी संरक्षणवाद को दर्शाती है, जो वैश्विक तकनीकी भर्ती और भारत की भूमिका को बदल सकती है।

H-1B वीजा शुल्क वृद्धि भारतीय आईटी कंपनियों और पेशेवरों के लिए तत्काल चुनौतियां पेश करती है, लेकिन यह भारत के लिए अवसर भी ला सकती है। स्थानीय भर्ती, ऑटोमेशन, और GCCs पर ध्यान केंद्रित कर कंपनियां इस संकट का सामना कर सकती हैं।

हालांकि, इस नीति का दीर्घकालिक प्रभाव भारत-अमेरिका संबंधों, वैश्विक प्रतिभा प्रवाह, और तकनीकी नवाचार पर निर्भर करेगा। भारत सरकार और नासकॉम इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ बातचीत कर रहे हैं, और अदालती चुनौतियां इस नीति के भविष्य को निर्धारित कर सकती हैं।

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