रूस ने अमेरिका की ओर से लगाए गए नए टैरिफ को ‘नवऔपनिवेशिक’ नीति करार देते हुए इसकी कड़ी निंदा की है, जबकि भारत ने रूसी तेल आयात को लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ की आलोचनाओं को “अनुचित और अव्यवहारिक” बताया। दोनों देशों ने ब्रिक्स सहयोग को मजबूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई, इसे वैश्विक दक्षिण की आवाज के रूप में स्थापित करने पर जोर दिया।
रूस का कड़ा जवाब
रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा कि अमेरिका अपनी घटती वैश्विक प्रभुत्व को स्वीकार नहीं कर पा रहा है और स्वतंत्र नीतियों वाले देशों पर आर्थिक दबाव डाल रहा है। उन्होंने कहा, “टैरिफ युद्ध या प्रतिबंध इतिहास के स्वाभाविक प्रवाह को नहीं रोक सकते। ब्रिक्स और ग्लोबल साउथ के हमारे सहयोगी देश इस दृष्टिकोण को साझा करते हैं।” जखारोवा ने अमेरिकी नीतियों को ब्रिक्स देशों की संप्रभुता पर हमला और उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का प्रयास बताया। उन्होंने रूस के ब्रिक्स साझेदारों के साथ सहयोग को और गहरा करने की बात कही, जो 2024 में मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यूएई और 2025 में इंडोनेशिया के शामिल होने से और मजबूत हुआ है।
भारत का पलटवार
भारत के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका और यूरोप की दोहरी नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि ये देश स्वयं रूस से विभिन्न वस्तुओं का आयात कर रहे हैं। मंत्रालय ने बताया कि 2024 में यूरोपीय संघ का रूस के साथ व्यापार भारत के कुल रूसी व्यापार से कहीं अधिक था, जिसमें ऊर्जा, उर्वरक, खनन उत्पाद, रसायन, लोहा-इस्पात और मशीनरी शामिल हैं। अमेरिका भी रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, पैलेडियम, उर्वरक और रसायन आयात करता है। मंत्रालय ने कहा, “इस पृष्ठभूमि में भारत को निशाना बनाना अनुचित और अव्यवहारिक है। भारत अपनी राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाएगा।”
ट्रंप की टैरिफ धमकी
1 अगस्त 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘पारस्परिक टैरिफ दरों में संशोधन’ नामक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें 60 से अधिक देशों पर बढ़े हुए टैरिफ लगाए गए। भारत पर 25% टैरिफ लगाया गया, और रूसी तेल खरीदने के लिए अतिरिक्त “दंड” की धमकी दी गई, हालांकि यह आदेश में शामिल नहीं था। ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर लिखा, “भारत न केवल रूस से भारी मात्रा में तेल खरीद रहा है, बल्कि इसे खुले बाजार में बड़े मुनाफे के लिए बेच रहा है। मैं भारत द्वारा अमेरिका को भुगतान किए जाने वाले टैरिफ को काफी हद तक बढ़ाऊंगा।”
भारत की स्थिति
भारत ने स्पष्ट किया कि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पारंपरिक तेल आपूर्तिकर्ताओं के यूरोप की ओर रुख करने के कारण रियायती रूसी तेल खरीदा गया, जिसे अमेरिका ने उस समय वैश्विक ऊर्जा बाजारों को स्थिर करने के लिए प्रोत्साहित किया था। भारत, जो अपनी 88% तेल जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है, में रूस अब 35-40% तेल आपूर्ति करता है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह कदम 1.4 अरब आबादी के लिए सस्ती और स्थिर ईंधन कीमतें सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “भारत और रूस का रिश्ता समय की कसौटी पर खरा है। हमारी ऊर्जा खरीद वैश्विक बाजार की स्थिति पर आधारित है।”
ब्रिक्स और वैश्विक संदर्भ
ब्रिक्स, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका के साथ-साथ मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यूएई और इंडोनेशिया शामिल हैं, ने रियो डी जनेरियो में जुलाई 2025 में अपने शिखर सम्मेलन में वैश्विक सहयोग और शांति को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता जताई। इसने एकतरफा टैरिफ और ईरान पर सैन्य हमलों की निंदा की, हालांकि अमेरिका या इजरायल का नाम नहीं लिया गया। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला ने ट्रंप की धमकियों को “सम्राट जैसी” नीति बताया, जबकि भारत ने ब्रिक्स को सहयोग का मंच बताकर टकराव से इनकार किया।
आर्थिक प्रभाव
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसमें 2024-25 में 186 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ, जिसमें भारत का 44.4 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष था। ट्रंप के टैरिफ से भारतीय निर्यात, विशेष रूप से आईटी, फार्मास्यूटिकल्स और कपड़ा क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। विश्लेषकों का अनुमान है कि रूसी तेल से दूरी बनाने पर भारत का आयात बिल 9-11 अरब डॉलर बढ़ सकता है, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी। भारत ने ब्रिक्स के साथ स्थानीय मुद्रा में व्यापार को बढ़ावा दिया है, जैसे 2022 से रूस के साथ रुपये में भुगतान, जो प्रतिबंधों से बचने का एक व्यावहारिक उपाय है।
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