सुगीतिका
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आरम्भिका–
सच्ची-झूठी ख़बरों से टकराते रहते हैं।
भारतीय हम,गीत सुरीले गाते रहते हैं।।

बोध-1
मँहगाई-डायन की घर-घर पूजा होती है।
हाथ जोड़ कर हम भी शीश झुकाते रहते हैं।।
बोध-2
भाग्य और भगवान हमारे बहुत क़रीबी हैं।
इनसे अपने सभी काम करवाते रहते हैं।।

बोध-3
गाल बजाने वाले हमको बहुत सुहाते हैं।
खरी सुनाने वालों को टरकाते रहते हैं।।

बोध-4
कभी-कभी हम कुत्तों जैसे लड़ भी जाते हैं।
एक दूसरे की गरदन नुचवाते रहते हैं।।

बोध-5
रीति-रिवाजों को हम अपना धर्म समझते हैं।
नयी रीति अपनाने में सकुचाते रहते हैं।।

अन्तिका–
सत्ता का अन्याय हमें जब-जब उकसाता है।
‘श्रीमाली’ सिंहासन पर चढ़ जाते रहते हैं।।
—-रचना –बृज राज श्रीमाली
————-17 सितम्बर-2022
झिलाही बाजार मनकापुर गोण्डा।

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